NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 2 The Nationalist Movement in Indo-China (Hindi Medium)
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प्रश्न अभ्यास
पाठ्यपुस्तक से
संक्षेप में लिखें
प्रश्न 1. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें
(क) उपनिवेशकारों के सभ्यता मिशन का क्या अर्थ था?
(ख) हुइन फू सो।
उत्तर
(क) उपनिवेशवाद में आर्थिक शोषण के अतिरिक्त उपनिवेशों को सभ्य बनाने का विचार भी काम कर रहा था। जिस तरह भारत के अंग्रेज़ दावा करते थे, उसी प्रकार फ्रांसीसियों का दावा था कि वे वियतनाम के लोगों को आधुनिक सभ्यता से परिचित करा रहे हैं। उनका विश्वास था कि यूरोप में सबसे विकसित सभ्यता कायम हो चुकी है। इसलिए वे मानते थे कि उपनिवेशों में आधुनिक विचारों का प्रसार करना यूरोपियों को ही दायित्व है और इस दायित्व की पूर्ति करने के लिए अगर उन्हें स्थानीय संस्कृतियों, धर्मों व परंपराओं को भी नष्ट करना पड़े तो इसमें कोई बुराई नहीं है। वैसे भी यूरोपीय शासक इन संस्कृतियों, धर्मों, परंपराओं को पुराना व बेकार मानते थे। उन्हें लगता था कि ये चीजें आधुनिक विकास को रोकती हैं।
(ख) हुइन फू सो-हुइन फू सो ‘होआ हाओ’ आंदोलन के संस्थापक थे। यह आंदोलन 1939 में शुरू हुआ था। यह आंदोलन 19वीं सदी के उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलनों में उपजे विचारों से प्रेरित था । हुइन फू सो जादू-येना और गरीबों की मदद किया करते थे। व्यर्थ के खर्चे के खिलाफ़ उनके उपदेशों का लोगों पर काफी असर था। वे बालिका वधुओं की खरीद-फरोख्त, शराब व अफ़ीम के प्रबल विरोधी थे। फ्रांसीसियों ने हुइन फू सो के आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया। उन्होंने फू सो को पागल घोषित कर दिया। फ्रांसीसी उन्हें पागल बोन्जे कहकर बुलाते थे। 1914 में फ्रांसीसी डॉक्टरों ने मान लिया कि वे पागल नहीं हैं। इसके बाद उन्हें वियतनाम से निष्कासित करके लाओस भेज दिया।
प्रश्न 2. निम्नलिखित की व्याख्या करें
- (क) वियतनाम के केवल एक-तिहाई विद्यार्थी ही स्कूली पढ़ाई सफलतापूर्वक पूरी कर पाते थे।
- (ख) फ्रांसीसियों ने मेकोंग डेल्टा क्षेत्र में नहरें बनवाना और जमीनों को सुखाना शुरू किया।
- (ग) सरकार ने आदेश दिया कि साइगॉन नेटिव गर्ल्स स्कूल उस लड़की को वापस कक्षा में ले, जिसे स्कूल से निकाल दिया गया था।
- (घ) हनोई के आधुनिक नवनिर्मित इलाकों में चूहे बहुत थे।
उत्तर (क) वियतनाम में स्कूलों में दाखिला लेने की ताकत वहाँ के धनी वर्ग के पास ही थी। यह देश की आबादी का एक छोटा हिस्सा था। जो स्कूल में दाखिला ले पाते थे, उनमें से बहुत थोड़े से विद्यार्थी ही ऐसे होते थे जो सफलतापूर्वक स्कूल की पढ़ाई पूरी कर पाते थे। दरअसल बहुत सारे बच्चों को तो आखिरी साल की परीक्षा में जानबूझ कर फेल कर दिया जाता था ताकि वे अच्छी नौकरियों के लिए योग्यता प्राप्त न कर सकें। आमतौर पर दो-तिहाई विद्यार्थियों को इसी तरह फेल कर दिया जाता था। 1925 में 1.7 करोड़ की आबादी में स्कूल की पढ़ाई पूरी करने वालों की संख्या 400 से भी कम थी।
(ख) फ्रांसीसियों ने वियतनाम के मेकोंग डेल्टा इलाके में खेती बढ़ाने के लिए सबसे पहले वहाँ नहरें बनवाईं और जमीनों को सुखाने के लिए जल निकासी का प्रबंध शुरू किया। सिंचाई की विशाल व्यवस्था बनाई गई। बहुत सारी नई नहरें और भूमिगत जल-धाराएँ बनाई गईं। ज्यादातर लोगों को जबरदस्ती काम पर लगाकर निर्मित की गई इस व्यवस्था से चावल के उत्पादन में वृद्धि हुई।
(ग) 1926 में साइगॉन नेटिव गर्ल्स स्कूल में एक बड़ा आंदोलन हुआ। यह आंदोलन तब शुरू हुआ जब एक कक्षा में अगली सीट पर बैठी वियतनामी लड़की को पिछली कतार में जाकर बैठने के लिए कहा गया क्योंकि अगली सीट पर एक फ्रांसीसी लड़की को बैठना था। वियतनामी लड़की ने सीट छोड़ने से इनकार कर दिया। स्कूल का प्रिंसिपल एक फ्रांसीसी था। उसने, उस लड़की को स्कूल से निकाल दिया। अन्य विद्यार्थियों ने भी जब प्रिंसिपल के फैसले का विरोध किया तो उन्हें भी स्कूल से निकाल दिया गया। इसके बाद यह विवाद बहुत फैल गया। हालात बेकाबू होने लगे तो सरकार ने आदेश दिया कि लड़की को दोबारा स्कूल में वापस ले लिया जाए। प्रिंसिपल ने लड़की को दाखिला तो दे दिया लेकिन ये ऐलान भी कर दिया कि ”मैं सारे वियतनामियों को पाँव तले कुचल कर रख दूंगा।”
(घ) हनोई के फ्रांसीसी आबादी वाले हिस्से को एक खूबसूरत और साफ-सुथरे शहर के रूप में बनाया गया था। वहाँ चौड़ी सड़कें थीं और जल-निकासी का बढ़िया इंतजाम था। शहर के आधुनिक भाग में लगे विशाल सीवर आधुनिकता का प्रतीक थे। यही सीवर चूहों को पनपने के लिए भी आदर्श स्थान साबित हुए। ये सीवर चूहों की निर्बाध आवाजाही के लिए भी उचित थे। इनमें चलते हुए चूहे पूरे शहर में बेखटके घूमते थे और इन्हीं पाइपों के रास्ते चूहे फ्रांसीसियों के चाक-चौबंद घरों में घुसने लगे।
प्रश्न 3. टोंकिन फ्री स्कूल की स्थापना के पीछे कौन-से विचार थे? वियतनाम में औपनिवेशिक विचारों के लिहाज से यह उदाहरण कितना सटीक है?
उत्तर 1907 में येकिन फ्री स्कूल की स्थापना की गई। इस स्कूल के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार थे
- पश्चिमी ढंग से शिक्षा देना था।
- इस शिक्षा में विज्ञान, स्वच्छता और फ्रांसीसी भाषा की कक्षाएँ भी शामिल थीं।
- यह वियतनाम में औपनिवेशिक विचारों का सटीक उदाहरण है क्योंकि स्कूल की राय में सिर्फ विज्ञान और पश्चिमी | विचारों की शिक्षा प्राप्त कर लेना ही काफी नहीं था, बल्कि आधुनिक बनने के लिए वियतनामियों को पश्चिम के लोगों जैसी ही दिखना भी पड़ेगा।
- यह स्कूल अपने छात्रों को पश्चिमी शैलियों को अपनाने के लिए उकसाता था। बच्चों को छोटे-छोटे बाल रखने की | सलाह दी जाती थी। वियतनामियों के लिए यह अपनी पहचान को पूरी तरह बदल डालने वाली बात थी। वे तो पारंपरिक रूप से लंबे ही बाल रखते थे।
प्रश्न 4. वियतनाम के बारे में फान यू त्रिन्ह का उद्देश्य क्या था? फान बोई चाऊ और उनके विचारों में क्या भिन्नता थी?
उत्तर फान यू त्रिन्ह वियतनाम के प्रमुख राष्ट्रवादी नेताओं में से एक थे। वे राजशाही या राजतंत्र के कट्टर विरोधी थे। उन्हें यह
स्वीकार नहीं था कि फ्रांसीसियों को देश से निकालने के लिए शाही दरबार या राजा की सहायता ली जाए। वे एक लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना करना चाहते थे। पश्चिम के लोकतांत्रिक आदर्शों से प्रभावित चिन्ह पश्चिमी सभ्यता को पूरी तरह खत्म करने के खिलाफ़ थे। उन्हें मुक्ति के फ्रांसीसी क्रांतिकारी आदर्श तो पसंद थे, लेकिन उनका आरोप था कि खुद फ्रांसीसी ही उन आदर्शों का अनुसरण नहीं कर रहे हैं। उनकी माँग थी कि फ्रांसीसी शासक वियतनाम में वैधानिक एवं शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना करें और कृषि व उद्योगों का विकास करें।
फान बोई चाऊ भी एक राष्ट्रवादी नेता थे। इन्होंने 1903 में रेवोल्यूशनरी सोसायटी नामक पार्टी का गठन किया और तभी से वे उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन के अहम नेता बने गए थे। इनके विचार फान बोई चाऊ से विपरीत थे। त्रिन्ह राजशाही को उखाड़ फेंकना चाहते थे, जबकि बोई चाऊ चाहते थे कि औपनिवेशिक शासन की समाप्ति के लिए राजशाही का प्रयोग किया जाए। त्रिन्ह की योजना थी कि लोगों को राजशाही के खिलाफ़ खड़ा किया जाए और फान बोई चाऊ इस योजना से असहमत थे । वास्तव में दोनों का लक्ष्य एक ही था लेकिन रास्ते अलग-अलग थे।
चर्चा करें
प्रश्न 1. इस अध्याय में आपने जो पढ़ा है, उसके हवाले से वियतनाम की संस्कृति और जीवन पर चीन के प्रभावों की चर्चा करें।
उत्तर इस अध्याय के आधार पर देखें तो वियतनाम की संस्कृति और जीवन पर चीन का प्रभाव स्पष्ट नजर आता है, जो इस प्रकार है
- वियतनाम के प्रारंभिक इतिहास को देखें तो पता चलता है कि पहले यहाँ बहुत सारे समाज रहते.थे और पूरे इलाके | पर शक्तिशाली चीनी साम्राज्य का वर्चस्व था। जब वहाँ स्वतंत्र देश की स्थापना कर ली गई तो भी वहाँ के शासकों ने न केवल चीनी शासन व्यवस्था को बल्कि चीनी संस्कृति को भी अपनाए रखा।
- वियतनाम समुद्री सिल्क रूट से भी जुड़ा हुआ था। इस कारण उसके चीन के साथ आर्थिक संबंध भी थे। इस रास्ते | से वस्तुओं, लोगों और विचारों को चीन के साथ आदान-प्रदान चलता रहता था।
- इन दोनों देशों में बौद्ध धर्म और कन्फ्युशियस धर्म प्रमुख रहे जिन्होंने दोनों देशों के आपसी संबंधों को काफी मजबूत बना दिया।
- वियतनाम का अभिजात वर्ग चीनी भाषा और कन्फ्यूशिसवाद की शिक्षा लेते थे।
- साम्राज्यवादी शक्तियों ने जब रेल, सड़क आदि के माध्यम से इन दोनों देशों को एक प्रशासनिक नियंत्रण में लाने का प्रयास किया तो ये देश और निकट आ गए।
- विदेशी साम्राज्यवाद का मुकाबला करने के लिए दोनों को एक जैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, जिससे इनके संबंध और घनिष्ठ हो गए।
इस प्रकार धीरे-धीरे वियतनाम ने चीन की संस्कृति में अपने आपको रंग लिया।
प्रश्न 2. वियतनाम में उपनिवेशवाद विरोधी भावनाओं के विकास में धार्मिक संगठनों की भूमिका क्या थी?
उत्तर वियतनामियों में धार्मिक विश्वास बौद्ध धर्म, कन्फ्यूशियसवाद और स्थानीय रीति-रिवाजों पर आधारित थे। फ्रांसीसी मिशनरी वियतनाम में ईसाई धर्म के बीज बोने का प्रयास कर रहे थे। 18वीं सदी से ही बहुत सारे धार्मिक आंदोलन पश्चिमी शक्तियों के प्रभाव और उपस्थिति के खिलाफ़ जागृति फैलाने का प्रयास कर रहे थे। इसके दो उदाहरण ये हैं
- स्कॉलर्स रिवोल्ट – 1868 का स्कॉलर्स रिवोल्ट फ्रांसीसी कब्जे और ईसाई धर्म के प्रसार के खिलाफ़ शुरुआती आंदोलनों में से था। इस आंदोलन की बागडोर शाही दरबार के अफसरों के हाथों में थी। ये अफ़सर कैथोलिक धर्म और फ्रांसीसी सत्ता के प्रसार से नाराज थे। इन्होंने एक हजार से ज्यादा ईसाइयों का कत्ल कर डाला। कैथोलिक मिशनरी 17 वीं सदी के शुरू से ही स्थानीय लोगों को ईसाई धर्म से जोड़ने में लगे हुए थे। 18वीं सदी के अंत तक उन्होंने लगभग 3 लाख लोगों को ईसाई बना लिया था। फ्रांसीसियों ने 1868 के आंदोलन को तो कुचल दिया, किंतु इस बगावत ने देशभक्तों में उत्साह का संचार जरूर किया।
- होआ हाओ आंदोलन – यह आंदोलन 1939 में शुरू हुआ था। यह एक ऐसा धार्मिक आंदोलन था जो औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध चलने वाले आंदोलनों का पक्षधर था । हरे-भरे मेकोंग डेल्टा इलाके में इसे भारी लोकप्रियता मिली। इस आंदोलन के संस्थापक का नाम हुइन्ह फू सो था। वे जादू-टोना और गरीबों की मदद किया करते थे। फ्रांसीसियों ने इस आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया।
इस तरह के आंदोलनों का राष्ट्रवाद की मुख्यधारा के साथ अंतर्विरोध संबंध रहता था। राजनीतिक दल ऐसे आंदोलनों से जुड़े जन-समर्थन का फायदा उठाने की तो कोशिश करते थे, लेकिन उनकी गतिविधि से बेचैन भी रहते थे।
इसके बावजूद साम्राज्यवादी भावनाओं को झकझोरने में ऐसे आंदोलनों के योगदान को कम करके नहीं आँका जा सकता।
प्रश्न 3. वियतनाम युद्ध में अमेरिकी हिस्सेदारी के कारणों की व्याख्या करें । अमेरिका के इस कृत्य से अमेरिका में जीवन पर क्या-क्या असर पड़े?
उत्तर वियतनाम युद्ध में अमेरिका की हिस्सेदारी के प्रमुख कारण इस प्रकार थे –
- अमेरिका के नीति निर्माता इस बात से परेशान थे कि अगर यहाँ पर हो ची मिन्ह की सरकार अपने प्रयासों में सफल हो गई तो यहाँ पर इस क्षेत्र के आस-पास के देशों में भी साम्यवादी सरकारें स्थापित हो जायेंगी।
- इससे एशिया महाद्वीप में साम्यवादी विचारधारा को मजबूत आधार मिल जाएगा और पूँजीवादी देश अन्य नए | साम्राज्यवादी हितों को इस महाद्वीप में पूरा नहीं कर सकेंगे।
- अमेरिका ने फ्रांस की इस युद्ध में मदद इसलिए भी की कि वह विश्व के अन्य देशों को यह बताना चाहता था कि वह | पूँजीवादी देशों का सबसे बड़ा शुभचिंतक है। अत: हर विपत्ति के समय में वह उनकी यथासंभव मदद करेगा।
- अमेरिका वियतनाम के एकीकरण के पक्ष में भी नहीं था। अतः जब ‘हो ची मिन्ह’ के नेतृत्व वाली सरकार की सहायता से ‘एन.एल.एफ’ (नेशनल लिबरेशन फ्रंट) ने देश के एकीकरण की आवाज उठाई, तो अमेरिका इसकी बढ़ती ताकत व प्रस्तावों से भयभीत हो गया तथा सोचने लगा कि कहीं पूरे वियतनाम पर साम्यवादियों को प्रभाव न बढ़ जाए। इसलिए इसने उ० वियतनाम में अपनी फौजें और युद्ध सामग्री एकत्र करनी प्रारंभ कर दी।
जब अमेरिका युद्ध में फ्रांस की मदद के लिए सम्मिलित हो गया, तब इसका प्रभाव वियतनामियों के साथ-साथ अमेरिका पर भी पड़ा। उसे भयंकर क्षति उठानी पड़ी। इस युद्ध में उसके 47,244 सैनिक मारे गए और 3,03,704 घायल हुए। अमेरिकी सरकार को अपनी ही जनता के विरोध का सामना इस प्रकार से करना पड़ा
- ज्यादातर अमेरिकी यह मानते थे कि उनका देश एक ऐसे युद्ध में अपनी सैन्य शक्ति नष्ट कर रहा है जिसे जीतना संभव नहीं है।
- अमेरिकी जनता का यह भी मानना था कि यदि अमेरिका इस युद्ध में हारा तो विश्व में उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचेगी, अत: अमेरिका को युद्ध से हट जाना चाहिए।
- युद्ध में सैनिकों की आवश्यकता पूर्ति के लिए अमेरिका में उन युवाओं को भर्ती किया जा रहा था जो अल्पसंख्यक और गरीब वर्ग से संबंधित थे। अमेरिका के अभिजात वर्ग के युवाओं को युद्ध से दूर रखा जा रहा था। इससे अमेरिका के अंदर अमेरिकी समाज में तनाव उत्पन्न हो गया जिससे सरकार को गृहयुद्ध का भय होने लगा।
- अमेरिकी मीडिया और फिल्म निर्माण क्षेत्रों में भी वियतनामी युद्ध की पृष्ठभूमि पर कई फिल्में बनीं जिससे अमेरिकी जनमत भी वियतनाम की तरफ झुकने लगा।
अंतत: अमेरिका में ही इस युद्ध के कारण काफी तनाव उत्पन्न हो गया।
प्रश्न 4. अमेरिका के खिलाफ वियतनामी युद्ध का निम्नलिखित दृष्टिकोण से मूल्यांकन कीजिए
(क) हो-ची-मिन्ह भूल-भूलैया मार्ग पर माल ढोने वाला कुली
(ख) एक महिला सिपाही
उत्तर
(क) हो-ची-मिन्ह भूल-भूलैया मार्ग पर माल ढोने वाले कुली की भूमिका – अमेरिका और वियतनाम के युद्ध में हो-ची-मिन्ह भूल-भूलैया मार्ग पर माल ढोने वाले कुलियों ने युद्ध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस मार्ग का प्रयोग देश के उत्तर से दक्षिण की ओर सैनिक व रसद पहुँचाने के लिए होता था जिससे वियतनामी सैनिक अमेरिका का मुकाबला कर पाये। इस मार्ग पर सामान पहुँचाने वाले कुली लगभग 25 किलो सामान पीठ पर या 70 किलो सामान साईकिलों पर लेकर निकल जाते थे। अमेरिकी सेना ने वियतनामी सैनिकों के लिए रसद की आपूर्ति को बंद करने के लिए कई बार इस मार्ग पर बम बरसाए। किंतु वे इसे ध्वस्त नहीं कर पाए क्योंकि वहाँ के लोग हर हमले के बाद उसकी फौरन मरम्मत कर लेते थे। इससे पता चलता है कि वियतनाम के लोग अपने सीमित संसाधनों को सूझबूझ से प्रयोग करना जानते थे।
(ख) एक महिला सैनिक – त्रियू अयू: विश्व के लगभग प्रत्येक देश में जहाँ पर राष्ट्रवादी आंदोलन हुए, महिलाओं की छवि को एक योद्धा के रूप में चित्रित करके जन प्रेरणा के लिए उसका प्रयोग हुआ। वियतनाम में भी एक ऐसी ही महिला ‘त्रियू अयू’ थी। इनको जन्म तीसरी सदी में हुआ था । वह बचपन में ही अनाथ हो गई थी। इस कारण वह अपने भाई के साथ रहने लगी। जब वे बड़ी हुईं तो इन्होंने अपना घर छोड़ दिया और जंगल में रहने लगीं। यहां इन्होंने एक विशाल सेना का गठन किया और चीनियों के वर्चस्व को चुनौती दी । जब उनकी सेना इस संघर्ष में हार गई, तो इन्होंने जल में डूबकर अपनी जान दे दी। इस प्रकार वियतनामी मानसम्मान की रक्षा करने वाली वे एक शहीद ही नहीं कहलाईं, बल्कि एक देवी की तरह पूजी भी गईं। राष्ट्रवादियों ने इनकी छवि का प्रयोग वियतनामी और अमेरिकी युद्ध में जनता में साहस की भावना उत्पन्न करने के लिए किया।
प्रश्न 5. वियतनाम में साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष में महिलाओं की क्या भूमिका थी? इसकी तुलना भारतीय राष्ट्रवादी संघर्ष में महिलाओं की भूमिका से कीजिए।
उत्तर वियतनाम में साम्राज्यवादी विरोधी संघर्ष में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। बहुत बड़ी संख्या में महिलाएँ प्रतिरोध आंदोलन में शामिल हो गईं। वे घायलों की मरहम पट्टी करने, भूमिगत कमरे व सुरंगे बनाने और दुश्मनों से मोर्चा लेने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगीं। उन्होंने छह हवाई पटियाँ बनाई, दस हजार बमों को बेकार किया, हजारों किलो माल ढोया, हथियार व गोला बारुद की सप्लाई जारी रखी और और 15 जहाजों को मार गिराया। 1965-75 के दौरान इस मार्ग पर चलने वाले युवाओं में 70-80 प्रतिशत लड़कियाँ थीं। एक सैनिक इतिहासकार के अनुसार वियतनामी सेना में 15 लाख महिलाएँ थीं। इन सबने इस संघर्ष में अद्वितीय साहस का परिचय दिया था।
राष्ट्रवादी भारतीय महिलाओं की वियतनामी राष्ट्रवादी महिलाओं से तुलना – भारत के राष्ट्रवादी आंदोलन में महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। परंतु इनके विरोध के तरीके वियतनामी महिलाओं से भिन्न थे। जैसे –
- 1857 के विद्रोह में रानी लक्ष्मीबाई ने युद्ध में सम्मिलित होकर और लखनऊ की बेगम ज़ीनत महल ने महल में ही रहकर अपनी सेना का नेतृत्व किया।
- भारतीय महिलाओं ने युद्धों की बजाए जन आंदोलनों में अधिक सक्रिय भूमिका निभाई, जैसे-होमरूल आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन आदि।
- भारतीय महिलाओं के संघर्ष का तरीका शांतिपूर्ण विरोध करने का था। धरने पर बैठना और जलसों के आयोजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना आदि उनका प्रमुख कार्य था।
- यद्यपि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महिलाओं ने शांतिपूर्ण मार्ग अपनाकर अपना विरोध ब्रिटिश शासन के प्रति प्रकट | किया, परंतु जब आज़ाद हिंद फौज का सुभाषचंद्र बोस जी ने गठन किया तो भारतीय महिलाएं इसमें भी भर्ती हुईं। इस प्रकार भारतीय महिलाओं ने शांतिपूर्ण विरोध के मार्ग को अधिक अपनाया था।
परियोजना कार्य
प्रश्न 1. दक्षिण अमेरिका के किसी एक देश में साम्राज्यवाद-विरोधी आंदोलन के बारे में पता लगाएँ । कल्पना कीजिए कि इस देश का एक स्वतंत्रता सेनानी वियेतमिन्ह के एक सिपाही से मिलता है; वे दोस्त बन जाते हैं और अपने-अपने देश में स्वतंत्रता संघर्षों के अनुभवों की चर्चा करने लगते हैं। उनके बीच क्या बातचीत हो सकती है, उसे लिखें।
उत्तर जब द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सभी उपनिवेशो में साम्राज्यवाद के विरूद्ध संघर्ष प्रारंभ हुआ तब संघर्ष द० अमेरिका (लैटिन अमेरिका) के देशों में भी हुआ। यहाँ पर इन देशों की स्वतंत्र सरकारें बनीं । यहाँ के देश हैं-अर्जेण्टाइना, चिली, उरूग्वे, परागुआ और क्यूबा। अर्जेण्टाइना का साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन
- द० अमेरिका के इतिहास में अर्जेण्टाइना में नए शासन की स्थापना एक नवयुग का श्री गणेश था।
- 24 फरवरी, 1946 को जे.डी. पेरा के नेतृत्व में नई सरकार बनी। वे स्वयं राष्ट्रपति नियुक्त हुए।
- सरकार को जन साधारण का समर्थन प्राप्त था।
- पेरा ने अपने देश के आर्थिक विकास के लिए कई जनहित कार्य किए। जैसे उद्योगों की प्रगति, रेल, टेलिफोन का विकास आदि।
- देश की सुरक्षा के लिए सैनिक सुदृढ़ता के कार्य भी किए गए।
- 14 सितंबर 1953 को पेरा के विरुद्ध सैनिक विद्रोह हुआ और यहाँ पर सैनिक शासन की स्थापना हुई।
जब दोनों देशों के सैनिक आपस में एक दूसरे से मिलेंगे तो वे संभवत: यह बातचीत करेंगे
- दोनों अपने-अपने देशों में अमेरिका के विरुद्ध संघर्ष के बारे में बात करेंगे कि कैसे उनके देश के लोगों ने अमेरिका के प्रभुत्व को चुनौती देकर उसे हराया।
- वियतनामी सैनिक जब अर्जेण्टाइना के सैनिकों को अपने देश के छात्रों, महिलाओं के योगदान के विषय में बताएगा | तो अर्जेण्टाइना का सैनिक भी बताएगा कि उसके देश में भी इन वर्गों ने संघर्ष में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
- वियतनामी सैनिक संघर्ष के बाद स्थापित हुई सरकार के विषय में भी बता सकता है। अर्जेण्टाइना का सैनिक भी | बताएगा कि उसके देश की नई सरकार ने भी कई जनहित कार्य किए हैं ताकि देश का विकास हो सके।